*वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के मूलभूत दोष और उनका इलाज़*

समाज और राजनीति एक दूसरे को प्रभावित करते रहते हैं। किसी देश की राजनीति में आये बदलाव के कारण समाज में बदलाव आना स्वभाविक हो जाता है और समाज में आये परिवर्तन राजनीति में परिवर्तन लाने का काम करता है। अतः इसी संदर्भ में वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के दोषों को देखा जा सकता है।
आज हमारा समाज 'दिखावेपन' को बढ़ावा देता दिखाई पड़ता है। समाज में स्मार्ट फ़ोन, ब्रैंडेड कपड़े, गाड़ी आदि स्टेटस सिंबल बन गएँ हैं। लोग अपना स्टेटस बनाने के लिए अपने मूलभूत जरूरतों को भी नज़रअंदाज़ करने को तैयार हैं। यही दोष राजनीति में भी शामिल हो चुका है। योजनाओं के बज़ट से अधिक विज्ञापन का बज़ट हो गया है। योजना प्रगतिशील हो या न हो, लोगों तक उनका लाभ पहुँच रहा हो या न पर भौकाली देना आवश्यक है। इसमें मीडिया वाले इनका बखूबी साथ देतें हैं। लोग भी "अपना कान पकड़ने के वजाए कौवे को देखते" हैं।
आज व्यक्ति की ब्रैंडिंग पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है। टीवी चैनलों एवं अख़बार द्वारा राजनेताओं का ब्रैंडिंग किया जा रहा है। समाज़हित के मूलभूत प्रश्नों को दरकिनार कर एक राजनेता कितने बजे जागता है, सोता है, दिन में कितना लीटर पानी पीता है आदि बेतुके मुद्दे को मुख्यधारा के खबरों में लाया जा रहा है। और आश्चर्य की बात यह बिलकुल नहीं की इसके लिए राजनैतिक पार्टियों, राजनेताओं द्वारा मीडिया को मोटी रक़म दी जाती हो। इनसब से समाजहित के मूल प्रश्न गौण हो जातें हैं।
किसी भी नेता के विचार, भाषा आदि का प्रभाव सीधे समाज़ पर पड़ता है। वर्तमान की राजनीति में पद की गरिमा का ह्रास हुआ है। बड़े-बड़े नेतागण भी भाषण देते वक़्त अपनी भाषा के गुणवत्ता का ख़्याल नहीं रखते, वे सारी मर्यादाओं को ताक पर रख देते हैं। यू.पी चुनाव में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा शमशान एवं कब्रिस्तान की बात करना, विमुद्रीकरण के दरम्यान उनके द्वारा B.H.U में भाषण देते वक्त सारे विपक्षी को पाक़िस्तान से तुलना करना इसका स्पष्ट उदाहरण है। इससे समाज़ का नैतिक पतन संभव है और इसका साक्षी फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया पर ट्रोल द्वारा उससे भिन्न विचार रखने वाले लोगों को दिया जाने वाला गाली है। यह समस्या भारत में ही नहीं विश्व के अन्य जगहों पर भी है। जैसे अमेरिका में दूसरे देश के आगंतुकों के साथ वहाँ के लोग व्यवहार कर रहें हैं। इसका कारण भी वहाँ के राष्ट्रपति 'ट्रम्प' का दूसरे देशों ख़ासकर मुस्लिम देशों के प्रति दृष्टिकोण है।
वर्तमान में productive कार्यों पर कम ध्यान दिया जा रहा है और इसके जगह भिन्न-भिन्न प्रकार के फ़िज़ूल काम तलाशे जा रहें हैं। इसी का एक परिणाम है झारखंड में 'Anti-Romio Squad' का निर्माण। इसका परिणाम निगेटिव हो सकता है। प्रेमी-जोड़ो, मंगेतर, एक साथ जाते भाई-बहन आदि को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। अन्तोगत्वा यह पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा।
ईलाज़*
इन सभी उपर्युक्त संदर्भों से यह स्पष्ट है कि वर्तमान राजनीति ख़ुद को समाजहित के मूल प्रश्नों को दरकिनार कर जनता का ध्यान गैरज़रूरी कार्यों पर केंद्रित करवाते दिखाई पड़ रही है। और यही इसका मूलभूत दोष है। चूँकि इन सभी गैरज़रूरी कार्यों को मीडिया द्वारा सह दिया जा रहा है अतः इसका एक सामाधान मीडिया के कार्यशैली में परिवर्तन लाना भी है। मीडिया को राजव्यवस्था को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए जनता के मुख्य मुद्दों को अपने बुलेटिन में जगह देना चाहिए। चाटुकारिता बंद कर देनी चाहिए।
दूसरा की सरकार को अपना ध्यान जनहित में जनता के मुख्य जरूरत जैसे "रोज़गार" को जल्द से जल्द बढ़ाने के दिशा में लगाना चाहिये। अन्तोगत्वा "रोज़गार" एवं गुणवत्ता युक्त "शिक्षा" ही राजनीति में आये सारे दोषों का ईलाज है। यही ईलाज शाश्वत भी है। रोज़गार न होने के ही कारण मामूली से रक़म में सोसल मीडिया, समाज में भाड़े के 'ट्रोल' छोड़े जा रहें हैं। यही ईलाज दो वर्गों में, जाती में, धर्म में, विचारों में आये कटुता का है। अतः सरकार को अपने सारे फ़िजूल के काम त्याग कर इस दिशा में कार्य करना चाहिए। साथ-साथ समस्त राजनेताओं के लिए बोलचाल की 'भाषा' में सुधार पर साप्ताहिक क्लास लगवाना चाहिए। ऐसे क्लास हर विधानसभा क्षेत्र में खोले जाने चाहिए। वहाँ पर चयन किये गए शिक्षकों का वेतन नेताओं के वेतन से काट कर दिया जाना चाहिए।
राजनीति में नये विचारों की साफ़ कमी देखी जा सकती है। नए विचारों का राजनीति में प्रवेश मुश्किल हो गया है और इसका कारण चुनाव दर चुनाव, चुनाव का महँगा होना है। इसका सामाधान ऐसा कानून हो सकता है जो चुनाव के दरम्यान इस्तमाल होने वाले संसाधनो को न्यूनतम करने की क़वायद करता हो।
©राहुल सिंह

टिप्पणियाँ

  1. Apne ek baat galat ki hai
    Vigyapan bhi jaruri hai logo ko jakruk karne ke liye lekin ek sima mein honi chaihaya or
    Pratek yojana ko logo tak pahuchane ke liye yojana ka 10 percent ya 20 percent advertising par spend krni hogi

    जवाब देंहटाएं

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