हाँ, वे पुलिसवाले ही थे!/ haan, ve police waale hi the
हाँ , वे पुलिसवाले ही थे! आँखे सुबह खुले नहीं थे , कि तीन-चार मुस्तनदे घर घुस आए थें। आते ही “अंकुर-अंकुर” कह चिल्लाए थे । मोटे तन पर ख़ाकी वर्दी , तिस पर था एक मोटा कोट । भृकुटि तनी हुई , चेहरे धधकते हुए हाथ मे मोटी थी लाठी , दिखने मे तो पुलिस जैसी ही थी उनकी कद-काठी। अरे! हाँ, वे पुलिसवाले ही थे! गालियां थी उनके हर सवाल में । बात-बात पर दो-चार थप्पड़ जड़ देते थे , अंकुर कहाँ है ? बस यही बार-बार पूछते थे। हमने कहा रहते तो यहीं हैं , लेकिन कहीं गये हैं। सच कहता हूँ , कहाँ गये हैं ? हमे मालूम नहीं है। डालो गाड़ी मे , ले चलो थाने , डालेंगे हावालात में , करेंगे इनकी कुटाई , तब बतलाएंगे कि अंकुर कहाँ है। यह सुनकर हम सब घबड़ाये , बड़ी हिम्मत कर के पूछे: हुआ क्या है ? हमारी गलती क्या है ? कृपया हमे बतलाए। “नारायण” , तुमलोग का भगवान जानते हो न उसे ? हुआ उसी का कत्ल है। क्यों... ? तुमलोगों ने ही तो किया उसका बंदोबस्त है ? ‘ सर ’ हमलोग ने तो बस , उसका नाम सुना है। कौन था ? कहाँ र