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वो.… एक दिन

                        वो.… एक दिन                                     (१)     कॉलेज से क्लॉस बंक कर के अनुज अपने दोस्तों के साथ पास के ही मैदान में क्रिकेट खेलने चला गया। लड़के दो टीमों में बँट गए। अनुज की पहले बैटिंग की बारी आई। दो विकेट जल्दी गिर जाने के बाद अनुज थोड़ा संभल कर खेलने लगा। इसी में २-३ ओवर और गुजर गए ,टीम के बाकि खिलाड़ी तेजी से रन बनाने के लिए जोर देने लग गए। अगला ओवर विपक्षी टीम के कप्तान का था, स्ट्राइक पे खड़ा अनुज पहले के चार गेंदों पर ३ चौके और एक छके की मदद से १८ रन बना चूका था। पांचवे गेंद पर दो रन निकालने के बाद वह विकेटकीपर से जाकर बोला -"आज इस कप्तान को मुझे कॉलेज टीम में न लेने की गलती का एहसास दिलाता हुँ। अगली गेंद खाली गयी। अगली ओवर में नीतीश ने एक रन लेकर स्ट्राइक अनुज को दिया। अनुज तो पहले से हीं रंग में था लेकिन रंग में भंग डालने का काम किया पहले से उमड़ते -घुमड़ते बादलों ने। पहले से पानी की हल्की फ़वारों ने तेज़ बारिश का रूप ले लिया। टीम के सारे खिलाड़ी तितर -बितर हो गए ,जिसे जो हाथ लगा उसे  उठाकर दौड़ पड़ा। अनुज भी बारिश से बचने के लिए अपने एक दो

खुद से लड़ाई

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                     खुद से लड़ाई  रोज सवेरे उठकर मैं , अपने आप से लड़ाई लड़ता हूँ।  अपने गलत आदतों को छोड़ने की  पल -पल प्रतिज्ञा करता हूँ , कुछ पल के लिए 'रमन एवं भाभा' को अपना आदर्श बना लेता हूँ।।                                                                         आँधी की तरह चले आतें हैं  'कुँवर' ,'भगत' एवं 'सुभाष' भी,  और अपने अंदर क्रांति की  एक चिंगारी सुलगता देखता हूँ।  योग गुरु रामदेव बाबा की  भारत स्वाभिमान की बातें मेरे अंदर की , चिंगारी को हवा दे देती हैं            और  मैं खुद को खादीधारियों से लोहा लेते पाता हूँ।। फिर राम नाम की शीतल हवा ,मेरी क्रांति चेतनाओं को  पल भर में बुझा देतीं हैं , यह माया मोह से दूर  अपने आप को प्रभु चरणों में घसीटता पाता हूँ।  फिर स्वचेतना जागजाती है.…  अपने आप को वहीँ कीचड़ में लेटा पता हूँ।। यह लड़ाई मैं आज से नहीं , कल से नहीं , बल्कि जबसे होश संभाला है  तब से लड़ता आ रहा हूँ।।                                     ~ राहुल -सिंह