संदेश

नवंबर 9, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खुश मत होइये! कालाधन कहीं नहीं जाने वाला!

चित्र
500/1000 के नोट बंद कर दिए गए हैं। इससे कालाधन ख़त्म हो जायेगा, भ्रस्टाचार पर नकेल कसेगा, आतंकियों को पहुँच रहे आर्थिक मदद पर भी रोक लगेगा आदि। इसे सुनते ही हम ख़ुशी से झूमने लगे, गाने लगे। हालाँकि थोड़ा असहज भी हुए क्योंकि किसी के घर में शादी है, कोई विद्यार्थी पॉकेट में 500 नोट रख़ ढ़ाबे पर खाने निकला इसके वावजूद हम प्रधानमंत्री के भाषण को ध्यान में रखकर ख़ुश ही हुए की थोड़े दिनों की दिक़्क़त है बाद में 'बागों में बहार' होगा ही। भारत में बड़े नोटों पर रोक पहली बार नहीं लगाया गया है। 1978 में 1000रु के नोट बाज़ार से हटा लिए गए थे। तो क्या तत्कालीन समय में कालाधन, भ्रस्टाचार ख़त्म हो गया था? क्या बागों में बहार आ गया था ? अगर ऐसा हुआ था तो फिर से 1000 रु के नोट का वापसी क्यों हुआ था ? क्या उस समय किसी दल, पार्टी ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया था ? हमलोग जो इस बात की खुशियाँ मना रहे हैं की जिनके घर पर नोटों के गद्दे बने हुए थे, तहख़ाने नोटों से भरे हुए थे उनकी तो खटिया खड़ी हो जायेगी तो खुश होने की जरुरत नहीं है। कालाधन को सफ़ेद करने वाले संस्थान जैसे मंदिर, दरगाह , NGO, trust, बाबाओं के