खुश मत होइये! कालाधन कहीं नहीं जाने वाला!
500/1000 के नोट बंद कर दिए गए हैं। इससे कालाधन ख़त्म हो जायेगा, भ्रस्टाचार पर नकेल कसेगा, आतंकियों को पहुँच रहे आर्थिक मदद पर भी रोक लगेगा आदि। इसे सुनते ही हम ख़ुशी से झूमने लगे, गाने लगे। हालाँकि थोड़ा असहज भी हुए क्योंकि किसी के घर में शादी है, कोई विद्यार्थी पॉकेट में 500 नोट रख़ ढ़ाबे पर खाने निकला इसके वावजूद हम प्रधानमंत्री के भाषण को ध्यान में रखकर ख़ुश ही हुए की थोड़े दिनों की दिक़्क़त है बाद में 'बागों में बहार' होगा ही। भारत में बड़े नोटों पर रोक पहली बार नहीं लगाया गया है। 1978 में 1000रु के नोट बाज़ार से हटा लिए गए थे। तो क्या तत्कालीन समय में कालाधन, भ्रस्टाचार ख़त्म हो गया था? क्या बागों में बहार आ गया था ? अगर ऐसा हुआ था तो फिर से 1000 रु के नोट का वापसी क्यों हुआ था ? क्या उस समय किसी दल, पार्टी ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया था ?
हमलोग जो इस बात की खुशियाँ मना रहे हैं की जिनके घर पर नोटों के गद्दे बने हुए थे, तहख़ाने नोटों से भरे हुए थे उनकी तो खटिया खड़ी हो जायेगी तो खुश होने की जरुरत नहीं है। कालाधन को सफ़ेद करने वाले संस्थान जैसे मंदिर, दरगाह , NGO, trust, बाबाओं के आश्रम खुले हैं ।वहां जाकर किसी भी भर ललाट चंदन लगाए व्यक्ति से या दरगाह पर गए है तो मौलवी से या trust/NGO में गए हैं तो उसके संस्थापक से मिलिए आपको वह कुछ ले-दे कर कालाधन को सफ़ेद करने के उपाय बता देगा। जिन्होंने बोरी भर-भर के नोट रखा हुआ था या नोटों के लिए तहखाना बना रखा था वे इन संस्थानों में जाकर अपना कालाधन सफ़ेद कर लेंगे।उपर्युक्त संस्थानों में पारदर्शिता नहीं है। इनमें से किसी का वार्षिक या मासिक या दैनिक चढ़ावा/आय तय नहीं है और इसी का फ़ायदा उठाकर कालाधन रखने वाले इनका रुख करेंगे। एक और महत्त्वपूर्ण बात जो दिमाग में आती है वो यह है की कुछ लोग कालाधन को सफ़ेद करने के लिए विद्यार्थियों के बैंक खाता का भी प्रयोग कर सकते हैं।
500/1000 के नोट पर प्रतिबन्ध के साथ यह भी घोषणा की गयी की जल्द ही 500 के नोट का नया संस्करण एवं 2000रु का नोट बाज़ार में आएगा। अब एक तरफ तो यह दलील दी जारही है की बड़े नोट के जाली नोट ज्यादा बनाये जाते हैं अतः 500/1000 के नोट हटाना इसलिए भी हैं वहीँ दूसरी ओर 2000 के नोट को लाकर जाली नोट के क़ारोबार को और बढ़ावा देने की संभावना को प्रसस्त किया जा रहा है। मेरे दोस्तों समझिये इस खेल को। हाल-फ़िलहाल में उठे सारे मामले जैसे jnu विद्यार्थी नजीब के ग़ायब होने, orop के लिए आत्महत्या करने पर मजबूर रिटायर्ड फ़ौजी, सिमी एनकाउंटर के फर्जी होने के सवाल, ndtv पर बैन आदि को दबाने के लिए इसे लाया गया है। ताकि इनसब मुद्दों को हम भूल जाए और भाजपा के लिए यूपी चुनावी ज़मीन तैयार हो सके। एक प्रश्न तो जायज़ हैं ही की यदि इन कवायदों से कालाधन ख़त्म हो जाता है तो इसका असर यूपी चुनाव प्रचार के दौरान दिखाना चाहिए। नेता हेलीकॉपटर के बजाये साइकिल, या एक-दो गाड़ियों में ही रैली में जाते दिखने चाहिए। अगर ऐसा नहीं दिखता तो खुश होने की जरुरत नहीं है।
© राहुल सिंह
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