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पास या फेल ?

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"देख मयंक मै तेरा दोस्त हूँ इसलिए समझा रहा हूँ। इसबार कैडर ज़रूर कर लेना। अब उम्र भी तो होगयी है, आखिर कब तक बैरेक मे रोटियाँ बेलता रहेगा? तरक्की हो जायेगी तो पैसे अच्छे मिलेंगे और साथ के साथ इज्ज़त भी मिलेगी। भोला को अच्छे स्कूल मे पढ़ा पायेगा। अच्छा कोचिंग दिलवा  पायेगा"।         'लेकिन यार सुरेश कैडर कर के भी क्या फायदा ? बिना बारहवीं किये तरक्की होने से रही और मै ठहरा दसवीं पास और वो भी थर्ड क्लास से' : मयंक ने तर्क किया। 'तो इसमें परेशान होने वाली कौन सी बात है ? देख डिपार्टमेंट की तरफ़ से एक लेटर बनवा फिर किसी भी स्कूल से परीक्षा दे दे' : सुरेश ने कहा । 'यार सुरेश अब पढ़ाई कौन करे इस बुढापे मे ? और लाख कोशिश कर लू क्या मुझे अब विषय समझ आयेंगे ? रोटियाँ ही बेलना सही है' : मयंक ने पुनः तर्क किया । 'यार मयंक मै हूँ न। हेडक्वाटर के ऑफीस मे अभी  उतना काम होता नही है, शाम मे बिलकुल फ्री रहता हूँ उस वक़्त तुझे गाईड कर दिया करूँगा। वैसे भी मेस शाम 8:30 बजे के बाद बंद ही हो जाता है ': सुरेश ने आशवस्त किया । मयंक मुस्कुरते हुए कहा, "ओके