आज़ साक़ी ने मुझे पिलाया ही नहीं !(GAZAL)
हसरते दिल लब पर कभी आया ही नहीं शायद मिरी मुहबत उसे भाया ही नहीं * हालाते आशिक़ पर खिलखिलाने वालों मुमकिन है कि तुमने दिल लगाया ही नहीं * जागते रह गए दीदारे हुस्न के लिए चाँद था वह, चाँद ने कल बताया ही नहीं * यह नशा उनका कि बेख़ुद हैं हम, वरना आज़ साक़ी ने मुझे पिलाया ही नहीं * मान लूँ कैसे किसी को हमराह अपना जब यहाँ कोई किसी के साथ आया ही नहीं राहुल सिंह