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जनवरी 9, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आज़ साक़ी ने मुझे पिलाया ही नहीं !(GAZAL)

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हसरते दिल लब पर कभी आया ही नहीं शायद मिरी मुहबत उसे भाया ही नहीं * हालाते आशिक़ पर खिलखिलाने वालों मुमकिन है कि तुमने दिल लगाया ही नहीं * जागते रह गए दीदारे हुस्न के लिए चाँद था वह, चाँद ने कल बताया ही नहीं * यह नशा उनका कि बेख़ुद हैं हम, वरना आज़ साक़ी ने मुझे पिलाया ही नहीं * मान लूँ कैसे किसी को हमराह अपना जब यहाँ कोई किसी के साथ आया ही नहीं                             राहुल सिंह