आज़ साक़ी ने मुझे पिलाया ही नहीं !(GAZAL)




हसरते दिल लब पर कभी आया ही नहीं
शायद मिरी मुहबत उसे भाया ही नहीं
*
हालाते आशिक़ पर खिलखिलाने वालों
मुमकिन है कि तुमने दिल लगाया ही नहीं
*
जागते रह गए दीदारे हुस्न के लिए
चाँद था वह, चाँद ने कल बताया ही नहीं
*
यह नशा उनका कि बेख़ुद हैं हम, वरना
आज़ साक़ी ने मुझे पिलाया ही नहीं
*
मान लूँ कैसे किसी को हमराह अपना
जब यहाँ कोई किसी के साथ आया ही नहीं
                           राहुल सिंह 

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