फिर से निरंकुश बन जाऊँ
फिर से निरंकुश बन जाऊँ मुन्ना जी करता है ,तेरे संग गुड़कियाँ लगाऊँ भागा -दौड़ी कर के गली में खूब शोर मचाऊँ दिन के सूरज चढ़ते ही, आम के बगीचे में घूस जाउँ कभी इस डाली तो कभी उस डाली कभी किसी के हाथ न आऊँ मुन्ना, जी करता है फिर से निरंकुश बन जाऊँ।। दिन के सूरज ढलते ही, चंदू ,सोनू ,मोनू को भी घर -घर जाकर साथ में लाऊँ फिर किसी खम्भे की आड़ में झट से गिनती सौ तक गिन जाऊँ जब तक मम्मी -पापा न आएं तब तक वापस घर न जाऊँ मुन्ना, जी करता है फिर से निरंकुश बन जाऊँ।। जब कभी भी बारिश हो गली में उतरकर छपकियाँ लगाऊँ कॉपी के पन्नें फाड़कर पानी में कश्तियाँ दौड़ाऊँ मुन्ना, जी करता है फिर से निरंकुश बन जाऊँ।। सुबह का सूरज जब निकले बस के हॉर्न कानो में गूंजे झट से मम्मी टिफ़िन भर लए तब पेट पकड़कर मैं खूब चिलाउँ स्कूल जाने से बच जाऊँ फिर तेरे संग गुड़कियाँ लगाऊँ मुन्ना, जी करता है फिर से निरंकुश बन जाऊँ।। ~ राहुल-सिंह