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न जाने किसलिए/Na jaane kisliye (shayari)

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# न जाने किसलिए # दिल मे अरमा लिये , लोग भटक रहे न जाने किसलिए पूरी हो जाए मुराद , घुम  रहे सारे इसलिए किसी ने पत्थर मे रब तराशा तो किसी ने मक्का मे खुदा तलाशा मैंने देखा है उसको तुझमे , कहीं और फ़रियाद करुँ मै किसलिए मन कि गलियारे मे पसरा है अंधेरा शबे बरात पर शायद दीपक जलाते है इसलिए अगर साफ हो हर मन , फिर पर्दा करे कोइ किसलिए कहती है वो मुझसे कि सच्चा प्यार है मेरा उससे पुछ रहे हैं मेरे हर हर्फ़ , किसी और से दिललगी फिर किसलिए  (  © राहुल सिंह)