न जाने किसलिए/Na jaane kisliye (shayari)
# न जाने किसलिए #
दिल मे अरमा लिये, लोग भटक रहे न जाने किसलिए
पूरी हो जाए मुराद, घुम रहे सारे इसलिए
किसी ने पत्थर मे रब तराशा
तो किसी ने मक्का मे खुदा तलाशा
मैंने देखा है उसको तुझमे, कहीं और फ़रियाद करुँ मै किसलिए
मन कि गलियारे मे पसरा है अंधेरा
शबे बरात पर शायद दीपक जलाते है इसलिए
अगर साफ हो हर मन, फिर
पर्दा करे कोइ किसलिए
कहती है वो मुझसे
कि सच्चा प्यार है मेरा उससे
पुछ रहे हैं मेरे हर हर्फ़, किसी और से दिललगी फिर किसलिए
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