ऐ क़लम तुम डरते हो क्या
ऐ क़लम तुम डरते हो क्या तिल-तिल कर मरते हो क्या ख़िदमत-ए-ताज़ में देखा है हुकमरानों से डरते हो क्या मुफ़लसी है तिरी या ख़्वाहिश-ए-दौलत कौड़ी कौड़ी के भाव बिकते हो क्या गरजा क़लम थर्राया सियासत हक़ीक़त है या फक़त ख़याल हो क्या ~ राहुल सिंह