क्या आप एक कार्यकर्ता को याद रखना चाहेंगे?
एक नेता को खड़ा करने से लेकर उसे लोकप्रिय बनाने तक में सैंकड़ो कार्यकर्ताओं का श्रम होता है। यही सत्य किसी पार्टी के लिए भी है। किसी पार्टी को खड़ा करने एवं लोकप्रिय बनाने में कई नेताओं एवं उनके पीछे हजारों-लाखों कार्यकर्ताओं का श्रम होता है। बाद में पार्टी या उसके मजबूत नेता तो याद रखे जातें हैं लेकिन कार्यकर्ता भूला दिए जातें हैं चाहे वह कार्यकर्ता कितना ही श्रमिक, चिंतनशील क्यों न हो। आज के समय में बड़ी पार्टियों में ऐसा बहुत कम सुनने को मिलता है कि कोई कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में नेता से ज़्यादा लोकप्रिय हो गया हो और पार्टी इसे ध्यान में रखते हुए उसे उम्मीदवार घोषित कर दी हो। कार्यकर्ताओं का यह सपना ही रह जाता है। यह एक सपना जैसा ही है कि एक साधारण परिवार से आने वाले कार्यकर्ता को पार्टी टिकट दे दे। आज का यह सत्य है की पार्टी अपने टिकट का बंटवारा व्यक्ति के आर्थिक सामर्थ्य के आधार पर करती है।
मान लीजिये पार्टी ने कार्यकर्ता की अगाध लोकप्रियता से प्रभावित होकर उसे टिकट देने का फ़ैसला कर लिया तो क्या ऐसा हो सकता है कि वह कार्यकर्ता टिकट लेने से मना कर दे। क्या वह इतना साहस, इतना त्याग अपने भीतर पैदा कर पायेगा की वह टिकट लेने से इसलिए इनकार कर दे क्योंकि एक बड़ा नेता बन जाने के बाद विधानसभा या लोकसभा में बैठकर वह लोगों की समस्या को इतने क़रीब से जानकार उसे हल नहीं कर पायेगा जो अभी एक कार्यकर्ता के रूप में कर पाता है।
ऐसे ही एक कार्यकर्ता को वर्षों से दिल में बसा रखी है हसपुरा की जनता। हसपुरा बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले का एक प्रखंड है। 2 जनवरी को यदि आप इस क्षेत्र से गुजर रहें हैं तो लोगों का एक हुजूम एक स्थान पर एकत्रित होता दिखाई देगा। भीड़ एकत्रित होती है उस दिन अपने कार्यकर्ता "रामरूप मेहता" का जन्मोत्सव मनाने के लिए। कई लोग उन्हें एक प्रखर नेता कहतें हैं लेकिन मैं उन्हें कार्यकर्ता कहता हूँ क्योंकि उन्होंने आजीवन एक कार्यकर्ता ही बने रहने का फैसला किया था।
रामरूप मेहता का जन्म 2 जनवरी 1936 को एक किसान परिवार में हुआ था। पिता का नाम राम प्रसन्न मेहता एवं माता का नाम जसिया देवी था। इनके दो अनुज राम जयपाल सिंह एवं रामभरत सिंह है।
जानने, सुनने और पढ़ने से पता चलता है कि रामरूप मेहता अपने विद्यालय के दिनों से ही राजनीति के तरफ़ आकर्षित थे।
उन्होंने स्थानीय विद्यालय हसपुरा से पढ़ाई कर कॉलेज में नामांकन कराया। इसी बीच सर्वोदय आंदोलन में कार्यकर्ताओं से इनकी मुलाक़ात हुई और विनोबाभावे का ऐतिहासिक भूदान आंदोलन जिसे जय प्रकाश जी का भी नेतृत्व प्राप्त था , उसमें पढ़ाई-लिखाई छोड़ कूद पड़े। लम्बे समय तक भूदान आन्दोलन में एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम किया।
1964 में डा. राम मनोहर लोहिया द्वारा सामाजिक और आर्थिक गैर बराबरी के ख़िलाफ़ छेड़े गए आन्दोलन में शामिल हो गए और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) की सदस्यता ग्रहण की। 1967 के चुनाव में पार्टी की ओर से बहुत ही ख़ास जिम्मेदारियां सम्भाली और पार्टी में अच्छी पहचान बनाई।
23 जनवरी 1969 को समाजवादी नेता मधु लिमये से जहानाबाद में पहली मुलाक़ात की, हमेशा संपर्क में रहें। अब तक इनकी लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गयी थी। 1972 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने व्यक्तिगत रूप से मिलकर कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ने की पेशकश की, लेकिन अपने सिद्धान्तों के कारण विनम्रता से टिकट लेने से इनकार कर दिया। बाद में बिहार लेलिन जगदेव प्रसाद द्वारा एक महत्वपूर्ण पद की पेशकश को भी इनकार कर दिया, लेकिन दोनों के बीच संबंध बना रहा।
राजनीति से इतर रामरूप मेहता ने संवाददाता का भी कार्य किया। डेहरी ऑन सोन से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक 'तूफ़ान' में संवाददाता थे।
16 मार्च 1980 को कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा उनकी हत्या कर दी गयी।
1981 से उनके प्रत्येक जन्मदिन को स्थानीय लोगों ने एक उत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया। तब से प्रत्येक वर्ष 2 जनवरी को वहाँ के स्थानीय लोगों के साथ-साथ राज्य के विभिन्न क्षेत्र से लोग उनके जन्मोत्सव मनाने के लिए एकत्रित होतें हैं। इस दिन फुटबॉल मैच का भी आयोजन किया जाता है साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत भी किया जाता है।
राहुल सिंह
मान लीजिये पार्टी ने कार्यकर्ता की अगाध लोकप्रियता से प्रभावित होकर उसे टिकट देने का फ़ैसला कर लिया तो क्या ऐसा हो सकता है कि वह कार्यकर्ता टिकट लेने से मना कर दे। क्या वह इतना साहस, इतना त्याग अपने भीतर पैदा कर पायेगा की वह टिकट लेने से इसलिए इनकार कर दे क्योंकि एक बड़ा नेता बन जाने के बाद विधानसभा या लोकसभा में बैठकर वह लोगों की समस्या को इतने क़रीब से जानकार उसे हल नहीं कर पायेगा जो अभी एक कार्यकर्ता के रूप में कर पाता है।
ऐसे ही एक कार्यकर्ता को वर्षों से दिल में बसा रखी है हसपुरा की जनता। हसपुरा बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले का एक प्रखंड है। 2 जनवरी को यदि आप इस क्षेत्र से गुजर रहें हैं तो लोगों का एक हुजूम एक स्थान पर एकत्रित होता दिखाई देगा। भीड़ एकत्रित होती है उस दिन अपने कार्यकर्ता "रामरूप मेहता" का जन्मोत्सव मनाने के लिए। कई लोग उन्हें एक प्रखर नेता कहतें हैं लेकिन मैं उन्हें कार्यकर्ता कहता हूँ क्योंकि उन्होंने आजीवन एक कार्यकर्ता ही बने रहने का फैसला किया था।
रामरूप मेहता का जन्म 2 जनवरी 1936 को एक किसान परिवार में हुआ था। पिता का नाम राम प्रसन्न मेहता एवं माता का नाम जसिया देवी था। इनके दो अनुज राम जयपाल सिंह एवं रामभरत सिंह है।
जानने, सुनने और पढ़ने से पता चलता है कि रामरूप मेहता अपने विद्यालय के दिनों से ही राजनीति के तरफ़ आकर्षित थे।
उन्होंने स्थानीय विद्यालय हसपुरा से पढ़ाई कर कॉलेज में नामांकन कराया। इसी बीच सर्वोदय आंदोलन में कार्यकर्ताओं से इनकी मुलाक़ात हुई और विनोबाभावे का ऐतिहासिक भूदान आंदोलन जिसे जय प्रकाश जी का भी नेतृत्व प्राप्त था , उसमें पढ़ाई-लिखाई छोड़ कूद पड़े। लम्बे समय तक भूदान आन्दोलन में एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में काम किया।
1964 में डा. राम मनोहर लोहिया द्वारा सामाजिक और आर्थिक गैर बराबरी के ख़िलाफ़ छेड़े गए आन्दोलन में शामिल हो गए और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) की सदस्यता ग्रहण की। 1967 के चुनाव में पार्टी की ओर से बहुत ही ख़ास जिम्मेदारियां सम्भाली और पार्टी में अच्छी पहचान बनाई।
23 जनवरी 1969 को समाजवादी नेता मधु लिमये से जहानाबाद में पहली मुलाक़ात की, हमेशा संपर्क में रहें। अब तक इनकी लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गयी थी। 1972 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने व्यक्तिगत रूप से मिलकर कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ने की पेशकश की, लेकिन अपने सिद्धान्तों के कारण विनम्रता से टिकट लेने से इनकार कर दिया। बाद में बिहार लेलिन जगदेव प्रसाद द्वारा एक महत्वपूर्ण पद की पेशकश को भी इनकार कर दिया, लेकिन दोनों के बीच संबंध बना रहा।
राजनीति से इतर रामरूप मेहता ने संवाददाता का भी कार्य किया। डेहरी ऑन सोन से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक 'तूफ़ान' में संवाददाता थे।
16 मार्च 1980 को कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा उनकी हत्या कर दी गयी।
1981 से उनके प्रत्येक जन्मदिन को स्थानीय लोगों ने एक उत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया। तब से प्रत्येक वर्ष 2 जनवरी को वहाँ के स्थानीय लोगों के साथ-साथ राज्य के विभिन्न क्षेत्र से लोग उनके जन्मोत्सव मनाने के लिए एकत्रित होतें हैं। इस दिन फुटबॉल मैच का भी आयोजन किया जाता है साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत भी किया जाता है।
राहुल सिंह
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