हाँ, वे पुलिसवाले ही थे!/ haan, ve police waale hi the
हाँ, वे पुलिसवाले ही थे!
आँखे सुबह खुले नहीं थे, कि
तीन-चार मुस्तनदे घर घुस आए थें।
आते ही
“अंकुर-अंकुर” कह चिल्लाए थे ।
मोटे तन पर ख़ाकी वर्दी,
तिस पर था एक मोटा कोट ।
भृकुटि तनी हुई, चेहरे धधकते हुए
हाथ मे मोटी थी लाठी,
दिखने मे तो पुलिस जैसी
ही
थी उनकी कद-काठी।
अरे! हाँ, वे पुलिसवाले ही
थे!
गालियां थी उनके हर सवाल में ।
बात-बात पर दो-चार थप्पड़ जड़ देते थे,
अंकुर कहाँ है?
बस यही बार-बार पूछते थे।
हमने कहा रहते तो यहीं हैं,
लेकिन कहीं गये हैं।
सच कहता हूँ , कहाँ गये हैं?
हमे मालूम नहीं है।
डालो गाड़ी मे,
ले चलो थाने,
डालेंगे हावालात में ,
करेंगे इनकी कुटाई,
तब बतलाएंगे कि
अंकुर कहाँ है।
यह सुनकर हम सब घबड़ाये,
बड़ी हिम्मत कर के पूछे:
हुआ क्या है? हमारी गलती क्या है?
कृपया हमे बतलाए।
“नारायण”, तुमलोग का भगवान
जानते हो न उसे?
हुआ उसी का कत्ल है।
क्यों... ? तुमलोगों ने ही तो किया
उसका बंदोबस्त है ?
‘सर’ हमलोग ने तो बस,
उसका नाम सुना है।
कौन था? कहाँ रहता था? कैसा
दिखता था?
हमें नहीं पता है।
न हम उससे न वो हमसे कभी
मिला है।
फिर हमलोगों को थाने ले
जाने को क्यूँ आपको सुझा है?
बहस करता है? दिखता नहीं ? पुलिस
हैं हम
यह कहकर तोड़ी हमपर लाठियाँ
और ठुस दिया हमें गाड़ी में ,
जैसे हम हो भेड़-बकरियाँ।
(2)
थाने जाकर मालूम चला कि,
केवल हमीं नहीं हैं,
जो चढे हैं इनके हत्थे।
वहाँ पहले से ही खड़े थे,
विद्यार्थियों के कुछ जत्थे।
हम पहुँचे अधिकारी के कार्यालय में ,
बताओ “श्रवण कुमार” और कौन-कौन
था?
कल रात “नारायण” के आलय मे।
कब से रट लगाए बैठे हो,
पहचानते तुम केवल तीन को
अच्छा बतलाओ देखकर बड़े ध्यान
से,
इनमें से कौन- कौन थे?
लाए गए हैं ऐ “अंकुर” के फ्लैट
से।
न मैं जानता इनको और न ही “अंकुर”
को।
बोला श्रवण कुमार:
झुठ बोल कैसे फंसा दूँ इनको,
जब नहीं है इनमे कोइ गुनहगार।
जैसे कुत्ते के सामने हड्डी,
आयी टेबल पर नोंटो की गड्डी,
आया जोश अधिकारी को,
बोला देख “श्रवण कुमार”
अगर नही बताए दस- बारह लड़कों के नाम,
तब तुझे ही बना दूँगा गुनहगार।
सुबह से अब शाम हो चली थी,
फिर भी सिर से विपदा नहीं टली
थी,
गलती क्या है हमारी? हमने फिर टोका,
उसने हमें बीच में ही रोका,
“अंकुर” के साथ रहते हो यही
है तुम्हारी गलती।
तुम ना सही, पर
वह तो करता था न “नारायण”
की भक्ति ॥
~ राहुल सिंह
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