पक्की सड़क(KAHAANI/कहानी)



मास्टर रामबाबू बहुत मेहनती हैं, स्कूल में हाज़िरी लेने के बाद जो थोड़ा वक़्त बच जाता है, वह समाज को जागरूक बनाने में बिताते हैं। रोज साईकिल से 6 किलोमीटर विद्यालय जाना और हाज़िरी लगाकर चले आना, कोई मामूली काम नहीं है। सड़क पर हाथ भर भर के गढ़े हैं। साईकिल पर गद्दीदार सीट ना हो तो कुर्सी पर बैठ नहीं पायेंगे। बरसात में तो, कितना ही बड़ा साईकिल चलकिया क्यों न हो अगर एक हाथ में छाता है, एक-दो बार सड़क के पानी में छपक ही लेगा। बाद में भले ही अनुभव हो जाए। 
मास्टरजी ऐसी परिस्थिति में पिछले 15 साल से हैं। कई बार तबादला का काग़ज आया लेकिन थोड़ी जान-पहचान होने के कारण वहाँ से डिगे नहीं। अपने साला के घर पर ही रहते हैं, वहाँ आराम की ज़िंदगी कट रही है। लेकिन उनकी माने तो यहाँ नौकरी करना किसी और की बूते की बात नहीं है। गाँववालों से कहते  फिरते हैं_ "ये तो हम हैं जो यहाँ टिके हुए हैं, दूसरा कोई मास्टर आये तो दो दिन में हेकड़ी निकल जायेगी। मैं सबका भला चाहता हूँ इसलिए यहाँ से नहीं जाता हूँ। जाऊँगा तो सड़क पक्की करवाकर।"
कई लोगों ने कहा_"मास्टरजी आप भी क्यों इतना शारीरिक कष्ट करते हैं, मोटरसाईकिल ख़रीद लीजिये। ख़ाली हाज़िरी ही तो लेनी होती है, मोटरसाईकिल ले लीजियेगा तो और जल्दी लौट आइयेगा, समय बर्बाद नहीं होगा।" वे यह कहकर टाल देते है की "फटफटिया ई सड़क पर नहीं चल सकता, जिस गढ़ा में अटकेगा आध लीटर तेल पी जाएगा और पेट्रोल का दाम तो जानते ही हैं। "
मास्टरजी स्कूल से आने के बाद शाम को चाय की दूकान पर बैठते और चाय के साथ सड़क ठीक न होने के कारण सबको होने वाली परेशानियों से अवगत कराते। रोज़ का इनका यही काम है। बातचीत में कही न कही से सड़क आ ही जाती है। वे लोगों को जागरूक करते की वोट उसी को देना जो सड़क बनवा सके। ख़ैर दो-तीन बार से ऐसा कोई प्रत्याशी आया ही नहीं की सड़क बनवा दे। लेकिन मास्टरजी भी कहाँ हार मानने वाले थे, अपने तबादले को टालवाते रहे। वहां रहकर लोगों को जागरूक करते रहे। 
आख़िरकार उनकी मेहनत रंग लाई। विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री ही बदल गए। नए मुख्यमंत्री ने गाँव को मुख्य सड़क से जोड़ने पर ख़ासा ज़ोर दिया। नए क़ानून पारित किये। नए क़ानून के तहत मुखिया और ठेकेदार को सड़क की ज़िम्मेदारी लेनी पड़ी और सिंगल लेन सड़क तैयार हो गयी। गढ़े भर गए , रोड पॉलिस किये हुए काले जूते की तरह चमकने लगा। मास्टरजी ख़ुशी ख़ुशी में मोटरसाईकिल ख़रीद लिए। उसी समय सरकार ने एक और अहम फ़ैसला लिया शिक्षा को दुरुस्त करने का। शिक्षको पर सख़्ती की गयी, लड़कियों को स्कूल जाने के लिए मुफ़्त साइकिल बांटे गए। लड़कियाँ रोड पर दनादन साईकिल दौड़ाने लगी। बहुत सालों बाद लोगों ने ऐसा रोड देखा था, कई तो पहली बार। किसी का रोड से उतरने का मन नहीं करता। सुबह के समय जब स्कूली छात्रों के साईकिल का हुजूम निकलता तो जाम लगना लाज़मी था। यहाँ तक की चरने जातीं भैंस और उनके चरवाहे भी सड़क से उतरना नहीं चाहते थे। पहले मास्टरजी की साईकिल गढ़े में फँसा करती थी अब मोटरसाईकिल जाम में।  रोज मसक्कत करनी पड़ती थी फिर भी स्कूल के लिए देर हो जाती थी। सर्कल इंस्पेक्टर पहले पहुँच जाते तो इसके एवज में जेब ढ़ीली करनी पड़ती थी। 
एक दिन उनके साले के घर के पते पर एक लिफ़ाफ़ा आया। लिफ़ाफ़ा मास्टरजी के तबादले का था। मास्टरजी लिफ़ाफ़े को हाथ में लेते हुए मन ही मन बोल पड़े _"अब तो सड़क चौड़ी करवाकर ही जायेंगे।"

                                                 राहुल सिंह  

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