बातें बड़ी -बड़ी (story)

                     बातें  बड़ी -बड़ी 

स्टेशन पर काफी भीड़ थी। यात्री प्लेटफम पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। तभी घोषणा हुई “यात्रीगण कृप्या ध्यान दे। जयपुर से अहमदाबाद को जाने वाली आला-हजरत एक्स्प्रेस कुछ ही समय मे प्लेटफर्म संख्या 4 के बजाए 3 पर आ रही है। आपकी असुविधा के लिये हमे खेद है”।
यह सुनकर लोग प्लेटफार्म संख्या 3 कि ओर तेजी से बढने लगे। कुछ समय के बाद ट्रेन भी वहाँ पहुंच गयी। लोग शिघ्रता से उस पर चढने का प्रयास करने लगे। मै भी बहुत दिक्कतों के बाद रिजर्वेशन अनुसार कोच संख्या 6 में चढ पाया। रिजर्वेशन कोच में भी काफी भीड़ थी। जेनरल कोच में पर्याप्त जगह न होने के कारण लोग शयनयान कोच में आ गए थे। मेरे सीट पर भी पहले से चार व्यक्ति बैठे हुए थे। मैंने उनसे हटने का आग्रह किया। उनलोगो ने मुझसे कहा कि उन्हे अगले स्टेशन



तक ही जाना है मैं इसी मे ही एडजस्ट कर लूँ । उन से जोर जबरदस्ती का कोइ फायदा न था अत: मै भी किसी तरह उनके बीच घुस कर बैठ गया और टी.टी.ई का इंतजार करने लगा। अब ट्रेन भी चल पड़ी थी, लोग भी स्थिर हो चुके थे। मेरे पास बैठे लोग किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। विषय काफी गंभीर जान पड़ रहा था। मेरे पास भी करने को कुछ नही था। खाली बैठ टी.टी.ई का इंतजार करने से अच्छा था कि उनकी बातो मे दिलचस्पी ली जाए। थोडा  ध्यान देने पर पता चला कि बाते वाकइ गंभीर मुद्दे पर हो रही है।
पहला व्यक्ति:- भाई, पता नहीं  इस देश का क्या होगा? इतने वर्षो तक कांग्रेस मुर्ख बनाते आई और अब भाजपा। चुनाव से पहले मोदी जी ने जो वायदे किए थे उनमे से तो कोई पूरा होते दिखाई न दे रहा है। न काला-धन आया और न ही खाते मे 15 लाख रुपये। ह ह ह (हसते हुए) अरे वो अपने गाँव के कैलाश जी बेचारे सप्ताह मे दो-तीन दिन तो बैंक के चक्कर तो काट ही आते थे। बडा विश्वास था उन्हे। कितना खुश हुए थे जब काला-धन जमा करने वाले कुछ व्यक्तियो का नाम सामने आया था लेकिन उसे जुमला बताकर साहजी ने दिल तोड़  दिया। मोदी जी तो कभी "स्वच्छ भारत" तो कभी "मेक इन इंडिया" का नौटंकी





करने मे लगे है। मुझे तो लगता है कि अच्छे दिन केवल उन्ही के आए है। जब से प्रधानमंत्री बने है घुम ही रहे है।
दुसरा व्यक्ति :- ए लो कर लो बात। "स्वच्छ भारत" और "मेक इन इंडिया" मे क्या नौटंकी है? अपना घर, मुहल्ला को साफ रखना गलत है क्या? प्लेटफार्म  पहले  से कितना साफ रहने लगा है। सरकारी बाबू लोग भी आफिस समय पर आने लगे है। और मेक इन इंडिया से भी तो अपने देश का भला होगा। देश का पैसा देश मे ही रहेगा।
तीसरा व्यक्ति:- चल मान ली थारी बात लेकिन इनसब चीज़ो से हम किसान भाइयो को के फायदा होये है? हम कौन से फसल विदेश मे जाकर उगा रहे है? हमरी गेहूँ, दालभी तो 'मेक इन इंडिया' से लेकिन मारे को तो पहले से ज्यादा मुनाफा न मिले है। पहले जैसे गेहूँ, बिक रहे से अब भी वैसे ही बिके से।
चौथा व्यक्ति:- बिल्कुल ठीक कहा आपने। कोई भी पार्टी हो इनके सिर्फ नाम ही अलग हैं अंदर से सब एक जैसे है। (तभी दूसरे व्यक्ति ने बिस्कीट का पाकेट फाड़ कर सब कि ओर घुमाते हुए बिस्कीट लेने का आग्रह किया)। “आप” पर भरोसा किया था लेकिन वो भी इन दिनो अपने ही मंत्रीयो से परेशान है...

यही सब बातें चल रही थी कि टी.टी.ई महोदय वहाँ आ गए। उन्होने सभी से अपना- अपना टिकट दिखाने को कहा। उन चार व्यक्तियो मे से दो के पास टिकट जेनरल कोच का था। टि.टि.ई ने उनसे penalty भरने को कहा इस पर वे लोग प्लेटफार्म परिवर्तन का हवाला देते हुए कहने लगे कि वे जल्दीबाजी मे sleeper कोच मे चढ गये अगर वे ऐसा नही करते तो वे ट्रेन पर नही चढ पाते। टी.टी.ई ने उनका टिकट देखते हुए कहा कि देखिये आपलोगो कि जेनरल कि टिकट फालना तक का है जो कि अभी बहुत दूर है। अभी से लगभग पांच घण्टे तो लग ही जायेंगे अगर आप यू हि यहाँ बैठे रहे तो जिनकी रिजर्वेशन है उनलोगो को सोने मे दिक्क्त होगी आप चाहे तो फालना तक कि कुछ सीटे खाली है मै उसका टिकट बना देता हु आपलोगो को मात्र 200-200 रुपए और देने होंगे। ईस पर उनमे से एक व्यक्ति बोला-

साहब हम लोगो के पास इतने पैसे नही है आप हम सब से कूल मिलाकर २०० ले लिजिए भले हि टिकट न दिजिए। कुछ और बात-चीत के बाद टी.टी.ई साहब भी मान गए फिर क्या था उनमे से एक व्यक्ति ने झट से बिस्कीट का packet एक कोने मे फेका और वे दोनों  टी.टी.ई के पीछे-पीछे चल दिए। 
            

            ~ राहुल सिंह 


          

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