NAVRATRA SPECIAL
बलि
आज सुबह से ही देवलोक में व्यस्तता नजर आ रही है। खास कर चित्रगुप्त बहुत व्यस्त नजर आ रहे हैं, वे सुबह से ही फाइलों में कुछ ढूँढने की कोशिश कर रहे है। अब तक न जाने कितने फाइलों को उन्होंने उलट -पलट दिया लेकिन सफलता नही मिली। अभी वे अपनी थकान मिटाने के लिए बैठें ही थे की 'नारायण -नारायण ' करते वहां नारद मुनि पहुँच गये। चित्रगुप्त के मस्तिक पर उदासी की लकीरों को भाँफते हुए उन्होंने उदासी का कारण पूछा। चित्रगुप्त बड़े ही धीमी आवाज़ में बोले की त्रिदेवियों (लक्ष्मी ,पार्वती एवं सरस्वती ) ने उन्हें इस नवरात्र के अवसर पर दुर्गा के सबसे बड़े भक्त के बारे में पता लगाने को कहा है लेकिन अभी तक कोई ऐसा न मिला जिसे सबसे बड़े भक्त का ख़िताब दिया जा सके। यह सुनकर नारद मुनि मुस्कुराये बोलें -बस इतनी सी बात ?गूगल बाबा पर सर्च कर लेते। चित्रगुप्त के चेहरे पर हैरानी देखकर उन्होंने अपने पॉकेट से एंड्राइड फ़ोन निकाला फिर चित्रगुप्त को दिखाते हुए बोले की ये लेटेस्ट टेक्नोलॉजी है ,इसमें गूगल है जिस पर सर्च करने पर हमें यह पता चल जायेगा की कौन से क्षेत्र में सबसे ज्यादा भक्ति की जाती है। फिर आप उस क्षेत्र का फाइल निकाल कर भक्त का नाम, पता आदि निकाल लेना। जब नारद मुनि ने सर्च किया तब काशी का नाम पहले आया, फाइलों को खंगालने का काम शुरू हुआ। अभी कार्य प्रगति पर ही था की अचानक से आवाज़ गूंजी -
"या देवी सर्वभूतेशु शक्ति रूपेण....... "
आवाज़ के स्रोत का पता लगाया गया ,पता चला की ये काशी के एक बहुत बड़े पंडित के यहाँ से आ रही है। अब चित्रगुप्त का काम और आसान हो गया, कुछ औपचारिक कार्यों को पूरा कर के पंडित का नाम फाइनल कर दिया गया और पंडित का नाम, पता त्रिदेवियों को सौंप दिया गया। अब तीनो देवियों ने निर्णय लिया की वे खुद नवें दिन उस पंडित से जाकर मिलेंगी । किसी के पहचान में न आये इसीलिए वे तीनो नृत्यकी का रूप धारण कर काशी पहुँच गयीं। त्रिदेवियों को जाता देख त्रिदेव भी अपना वेश बदलकर काशी पहुँच गए।
उधर दुर्गा माँ के महान भक्त 'पंडित' ने अपने चेलों से ये आग्रह किया की नवरात्र के नवे रात्रि को माता का जागरण रखा जाए। भक्तजन जागरण हेतु नृतकियों की तलाश करने लगे तभी उन्हें जानकारी मिली की आज ही एक नयी जागरण कम्पनी की स्थापना हुई है। भक्तों ने भी सोंचा की इस बार नयी बालाओं के नृत्य का ही आनंद लिया जाये। शाम के आठ बजे जागरण शुरू किया गया
शिवजी ने गाना आरम्भ किया -
"ये माँ का जागरण है …"
उनके गाने पर तीनो देवियाँ थिरक रहीं थीं ,विष्णु और ब्रह्मा वाद्य यंत्र बजा रहे थे। जैसे -जैसे समय बीतता गया पंडितजी नृतकियों पे मुग्ध होते गए। पंडितजी मन ही मन अपने अनुयाइयों को शाबाशी दे रहे थे। कुछ समय और बिता, एकाएक पंडितजी ने ये घोषणा कर दिया की अब गाना हम बजायेंगे। गाना बजा -
"माय नेम इज शीला ,शीला की जवानी...."
उन बालाओं को खड़े देख पंडित जी चिलायें -'अरे नाच …नाचती क्यों नहीं। तभी पार्वती ने जबाब दिया की हम ऐसे गानों पे नृत्य नही करतीं। पंडितजी जी पुनः चिलाकर बोलें -लेकिन हम तो देखते हैं और ये हमारे यहाँ की प्रथा है। बात आगे बढ़ता की उधर से एक भक्त भागते हुए आया और बोला -
पंडितजी १२ बजने में बस एक मिनट ही बाकि है ,चलिए पहले बकरे की बलि दुर्गा माँ को दे दी जाये फिर उधर बकरा पकता रहेगा और इधर जागरण चलता रहेगा। तभी एक भक्त बकरे को खींचता हुआ पंडितजी के पास लाया। बकरा बहुत चीख रहा था ,विष्णु की नज़र बकरे पर पड़ी और उनकी आँखे खुली की खुली रह गयी। दरअसल बकरे के वेश में कोई और नही नारद मुनि थें। पंडितजी ने मंत्रोचारण शुरू किया नारदजी को माला पहनाया गया, तिलक लगाया गया। सारे विधि पूर्ण किये गए.कसाई को बुलाया गया। अब नारद मुनि की बलि लगभग तये थी तभी विष्णु जी मंच से नारद मुनि को बचाने उतर आये और चिला कर बोले "पंडितजी पहले हमारे बाकि के पैसे दे दीजिये हम से इस तरह के नृत्य नहीं होंगे। इतना कहना था की पंडितजी एवं उनके चेला विष्णु से उलझ गए, उधर शिवजी ने मौके का फायदा उठाकर नारद मुनि को फंदे से आज़ाद करा दिया। नारद मुनि को भागता देख पंडितजी उसके पीछे भागे और उनके पीछे उनके चेले।मौके का फायदा उठाकर त्रिदेव तीनो देवियों के साथ नौ दो ग्यारह हो गए।
देवलोक पहुचने के बाद नारदजी ने कहा-
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