Memories from childhood -I
यादें … बचपन की-I
इसमें कोई शक नहीं की जीवन का सबसे हसीं लम्हा बचपन ही होता है । जब भी आपका मन उदास हो तो आप अपने बचपन के दिनों को याद करें ,मन अपने आप खुश हो जायेगा । बचपन है ही ऐसा । हर किसी की अपने -अपने बचपन की यादें होंगी ,मेरी भी हैं ,उनमे से कुछ रोचक यादों को यहाँ लिपिबद्ध करने जा रहा हूँ ।
अपने नानी घर रहना बहुत पसंद था ,अभी भी है लेकिन उस समय कुछ ज्यादा ही था और हो भी क्यों ना बचपन का समय था और वहां मुझे मेरे हर शरारती काम में साथ देने वाला मेरा ममेरा भाई जो था । एक बार की बात है मैं और मेरा ममेरा भाई जिसका की नाम प्रिंस है, गाँव के लड़को के साथ 'पिट्टो ' खेल रहे थें । एक और खास बात हमदोनो भाई हमेसा एक ही टीम में रहते थें चाहे कुछ भी हो जाये । खेल जारी था ,हमारी टीम को गेंद से
पिट्टो (stacks of seven stones) गिरना था । हमारे टीम के एक लड़के ने पिट्टो गिरा दिया फिर हम सब खेल के नियम के मुताबिक विपक्षी टीम के गेंद के प्रहार से बचने के लिए इधर -उधर भागने लगें । एक लड़के ने गेंद मारी और गेंद किसी को छुए बिना पिट्टो से दूर जा कर गिरी । मौके का फायदा उठाकर मेरा भाई पत्थरों को एक के ऊपर एक सजाने लगा तभी एक लड़के ने तेजी से गेंद मेरे भाई की ओऱ फेंका लेकिन गेंद मेरे भाई के लगे बिना ही पास के एक कुँए (बावड़ी ) में जा गिरी । गेंद मेरे एक जिगरी दोस्त का थी। गेंद कुएं में गिर जाने से वो रोने लगा । मैं भी वात्सल्य हृदय ,मुझे उस पर दया आ गयी । जिस लड़के ने गेंद मरी थी उसे मैंने अपने दोस्त की गेंद लौटने को कहा लेकिन वो उल्टा मुझ से हीं उलझ गया और गलती मेरे भाई की बताने लगा । मामला हाथापाई पे आ गया और अचानक धक्के के कारण वो लड़का कुँए में गिर गया । बाकि के लड़के शोर मचाने लगें ,गाँव के लोग इक्कठे हुए । गाँव का हीं एक व्यक्ति उसे बचाने के लिए कुंएं में कूद गया । इधर मौका देखकर मैं और मेरा भाई वहां से बाज़ार की ओर खिसक लियें और जान बुझ कर बाज़ार में खूब देर लगाएं की तब तक मामा का गुस्सा शांत हो जाये । शाम को हम घर आएं तो मामा ने हमारी खूब खबर ली लेकिन बाज़ार में बिताया वक्त काम आया और हमें मामा का ज्यादा गुस्सा झेलना न पड़ा.…। ॥
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