चनाचुरवाला (लघु-कथा)

                   चनाचुरवाला (लघु-कथा)

दोपहर का समय, चिलचिलाती धूप, अचानक से आवाज़ सुनाई पड़ती   -

"चना बनाया चूर ,लाया इसे इतना दूर… "

मुन्ना अपने दादाजी को सोता देख धीरे से उनके बगल से उठता और फिर घर में पड़े प्लास्टिक की बोतले , टूटे  वर्तन आदि जो भी मिलता उसे उठाकर  नंगे पैर उस आवाज़ के पीछे दौड़ जाता। चनाचूरवाले के पास पहुंचकर अपने तोतले आवाज़ में बोलता-"बूढ़े दादाजी मुझे भी तनातुल दो न",और अपने हाथ में लाये हुए सामान उसे थमा देता। चनाचूर वाला प्यार से मुन्ना को समझाता-"बेटा मैंने कितनी बार तुझे बोला है की मैं प्लास्टिक की बोतलें, वर्तन आदि नहीं लेता फिर भी तू रोज ऐसी ही चीजें लता है, पैसे लाया कर पैसे " फिर मुन्ना के चेहरे पे उदासी देखकर कर  थोड़ा सा चनाचूर कागज में लपेट कर थमा देता और बोलता की ले जा बेटा तुझे खाता देख गावों के बाकि बच्चे भी चनाचूर खरीदने आएंगे लेकिन कल से पैसे जरूर लाना। इतना कहकर चनाचूर वाला आगे बढ़ जाता -

"चना बनाया चूर ,लाया इसे इतना दूर… "
मुन्ना रोज दोपहर में उसका इंतज़ार करता और आवाज़ सुनते ही घर से निकल जाता। कभी पैसे लेकर तो कभी टूटे फूटे प्लास्टिक के वर्तन तो कभी खाली हाथ ही लेकिन "बूढ़े दादाजी " उसे कभी निराश नही करते। 


मुन्ना अपने "बूढ़े दादाजी" का रोज इंतजार करता था। हर दिन की भांति मुन्ना आज भी "बूढ़े दादाजी" का इंतज़ार कर रहा था लेकिन आज कोई आवाज़ सुनाई नही दी ,मुन्ना बेचैन हो गया कभी वो घर के दरवाज़े पे जा कर झांकता  तो कभी छत पर चढ़कर दूर तक नज़रें दौड़ाता। इसी बीच दादाजी जाग गए ,मुन्ना को बेचैन देख वे बोले -क्यों मुन्ना आज चनाचूर नही मिला क्या ?मुन्ना को पता चल गया की उसकी चोरी पकड़ी गयी, वह दबी आवाज़ में बोला -आज आये ही नहीं। दादाजी मुस्कुराते हुए बोले आएगा कैसे ?बेचारा भरी दोपहरी में इतने दुर से चनाचूर बेचने आता है लेकिन ठीक से दो पैसे नहीं कमा पता। मुन्ना सोच में पड़ गया और मन ही मन अपने आप को दोस्ि मानने लगा।

बहुत दिन बीत गए पर चनाचूर वाला गावों में नहीं आया। मुन्ना उदास रहने लगा, मुन्ना की उदासी देखकर उसके दादाजी ने चनाचूर वाले के बारे में पता लगवाया। पता चला की वो बीमार है ,जवान बेटों ने बूढ़े दम्पतियों को अलग कर दिया है। बूढ़ा अपना और अपनी पत्नी के पेट भरने के लिए तेज दुपहरी में चनाचूर बेचता  है। मुन्ना के दादाजी ने चनाचूर वाले की मदद करनी चाही लेकिन वे भी अपने बेटे और बहु के डर से कर नहीं पाये। 

फिर एक दिन अचानक आवाज़ सुनाई दी -

"चना बनाया चूर ,लाया इसे इतना दूर… "

मुन्ना अचानक से उठा उसने घर के चारो ओर नज़रें दौड़ाई, उसे अलमीरा पर रखा माँ के हाथों का सोने के कंगन दिखाई दिए। वह उसे ही उठाकर दौड़ पड़ा, मुन्ना को कंगन ले जाते दादाजी ने देखा लेकिन रोकना मुनासिब न समझा। मुन्ना हांफता हुआ बोला -"बूढ़े दादाजी ये लो", सोने के कंगन देख चनाचूर वाले के आँखों में आंसू आ गए। वह मुन्ना को गोद में उठाते हुए बोला -"बेटा मुझे इसकी कोई जरुरत नहीं, ये सिर्फ मेरी  बीमारी ठीक कर सकता है लेकिन मेरे दिल पे लगे जख्मों पर मरहम नहीं लगा सकता"। उसने मुन्ना को मुट्ठी भर चनाचूर दिए और बिना बेचे ही चला गया। फिर उसके बाद कभी दिखाई न दिया …

                                                                                                   ~ राहुल -सिंह 



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