फिर से की जा रही है बात विकास की...

 हाँ, फिर से की जा रही है
 बात विकास की
वही विकास
जो है किसानों के गले में पड़नेवाला

रेश्मी फाँसी का फंदा
वही विकास
जो पैदा करता है स्थिति
'आगे कुआँ पीछे खाई' का

अगर इसका साथ दो
तो खोते हो अपना जमीं
जिस पर लगता है फैक्ट्री
जो हवा में घोलता है धुँआ
नदी में घोलता है ज़हर

अगर करते हो इसका विरोध
तो कहलाते हो प्रगति के राह में रोड़ा
और कभी-कभी देशद्रोही भी

                                 राहुल सिंह

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सिमी-राकेश (लप्रेक)

मिट्टी का सामान बनाना कितना मुश्क़िल?

क्या आप एक कार्यकर्ता को याद रखना चाहेंगे?