*अबकी बार 56 इंच की छाती पर गोली भी खाने को तैयार !*
लोकसभा के चुनाव में मौजूदा सरकार के जुमलों का कमाल हमसब देख चुकें हैं । अपने जुमलों के ही कारण भाजपा पूर्ण बहुमत पाने में कामयाब हुई थी। बाद के चुनाओं में भले ही इस वेवफ़ा सरकार को इन्हीं जुमलो के कारण हार मिली हो लेकिन ये उन पार्टियों में से नहीं है जो अपनी हार से सीख लेकर अपनी नीति बदल दे। आप देख ही चूके हैं कि दिल्ली हार जाने के वावजूद भी इसने अपनी 'जुमला नीति' को नहीं त्यागा और बिहार चुनाव प्रचार में भी बखूबी इस्तमाल किया। जैसे माननीय प्रधानमंत्री बोलते दिखाई दिए थे की चुनाव जीतने के बाद वो बिहार को 1.25 करोड़ रुपये का फंड देंगे। लेकिन शायद बिहार की जनता को बात समझ नहीं आयी या फिर यह हो सकता है की वो वेवफ़ा से दिल न लगाना चाहती हो। इन सभी चीज़ो के वावजूद भाजपा का जुमला प्रेम बना हुआ है चाहे उसका रूप बदल गया हो।

ऊ.प्र विधान सभा चुनाव अगले साल होने जा रहा है। जुमले बनने शुरू हो गए हैं। थोड़ा रूप बदला हुआ जरूर है पर है वही जुमला। जो लोग व्हाट्सएप्प चलाते हैं उन्हें प्रायः मिलता रहता होगा। सिर्फ भाजपा की ही बात करे तो बाकी पार्टियों के साथ नाइंसाफ़ी होगी। बाकी पार्टियाँ भी खूब मेहनत कर रही है। प्रशासन चौकना हो गया है। अचानक से थानों में लोगों की बात सुनी जाने लगी है। किसी FIR पर quick action लिया जाने लग गया है। मुख्यमंत्री जी मीडिया से मुखातिब होने लग गयें हैं। "बहनजी" को देखकर तो ऐसा लग रहा की मानो उनमे कही से आलौकिक ऊर्जा आगयी हो। कभी वो दलितों के लिए दहाड़ रही है तो कभी उड़ान भर रही है। बाबा साहब को बार-बार याद किया जा रहा है। सोनिया जी भी चुनावी बिगुल फूंक चुकी हैं। सभी पार्टियों के लिए अचानक दलित भगवान हो गया है। और हो भी क्यों न? प्रदेश के वोट बैंक का समीकरण ही कुछ ऐसा है।
पिछड़ा वर्ग क़रीब 61 % (ओबीसी मिलाकर ), 19 % के करीब मुसलमान और 18 % के प्रति upper कास्ट। कुल 403 सीट है। अब आप थोड़ा बहुत भी गणित जानते होंगे तो आप समझ गए होंगे की क्यों पिछड़ा वर्ग इस वक्त हर पार्टियों के आँख का तारा बना हुआ है।

पिछले कुछ महीनों में बीफ़ ने खूब सुर्खियां बटोरी। गुजरात में संघ परिवार ने गौ रक्षा खूब किया। दलितों को मारा गया। भारत सरकार चुप रही। कोई पुख्ता कार्यवाही नहीं हुई। हर बात पर टवीट करने वाले प्रधानमंत्री जी ने भी कुछ नहीं कहा। लेकिन अब जब चुनावी माहौल बनने लगा है तब घटना के करीब एक महीने बाद मोदीजी को दलितो में भाई नजर आने लगा और वो अपने 56 इंच के सीने पर गोली खाने को तैयार हो गए। आखिर अब बच भी क्या गया है, पिछले सारे जुमलो का जादू समाप्त हो गया है। बार-बार गंगा मैया बुलाने से रही। जो बेटा वादा करके गया था इन दो साल में वैसा कुछ हुआ नहीं। तो नए जुमले ही बनाने होंगे। माँ-बेटे का रिश्ता स्थापित करने में अभी तक विफल रहे है। जो लोग काशी में रहते हैं उन्हें तो काशी काफी बदला हुआ तो नज़र आता ही होगा?

ऊ.प्र के भाइयों से अपील करना चाहूँगा की किसी वेवफ़ा को इस बार अपना दिल ना दें। इस बार के चुनावी प्रचारों को खूब ध्यान से देखिये, रैली में भी जाइये। हर पार्टी के चुनावी प्रचार को देखिए और यह नोटिस कीजिये की किसकी रैली बड़ी है, किस रैली में ताम-झाम ज्यादा लगा है, किस में पैसा ज्यादा लगा है। जो पार्टी या जो उमीदवार ज्यादा पैसा खर्च कर रहा हो चुनावी प्रचार में उसे तो वोट कतई नहीं दीजिये। क्योंकि ये पार्टियां जीत गयी तो सबसे पहले चुनाव में खर्च हुए पैसे निकालना चाहेगी और वो पैसा आपका होगा। वो पैसा कोई योजना लाकर खाया जायेगा। आपके हित में जो पैसे खर्च वाले होंगे वो नेताओं के जेब में जायेगा, पार्टी फंड में जायेगा और आप फिर पाँच साल तक देखते रहिएगा।
© राहुल सिंह
ऊ.प्र विधान सभा चुनाव अगले साल होने जा रहा है। जुमले बनने शुरू हो गए हैं। थोड़ा रूप बदला हुआ जरूर है पर है वही जुमला। जो लोग व्हाट्सएप्प चलाते हैं उन्हें प्रायः मिलता रहता होगा। सिर्फ भाजपा की ही बात करे तो बाकी पार्टियों के साथ नाइंसाफ़ी होगी। बाकी पार्टियाँ भी खूब मेहनत कर रही है। प्रशासन चौकना हो गया है। अचानक से थानों में लोगों की बात सुनी जाने लगी है। किसी FIR पर quick action लिया जाने लग गया है। मुख्यमंत्री जी मीडिया से मुखातिब होने लग गयें हैं। "बहनजी" को देखकर तो ऐसा लग रहा की मानो उनमे कही से आलौकिक ऊर्जा आगयी हो। कभी वो दलितों के लिए दहाड़ रही है तो कभी उड़ान भर रही है। बाबा साहब को बार-बार याद किया जा रहा है। सोनिया जी भी चुनावी बिगुल फूंक चुकी हैं। सभी पार्टियों के लिए अचानक दलित भगवान हो गया है। और हो भी क्यों न? प्रदेश के वोट बैंक का समीकरण ही कुछ ऐसा है।
पिछड़ा वर्ग क़रीब 61 % (ओबीसी मिलाकर ), 19 % के करीब मुसलमान और 18 % के प्रति upper कास्ट। कुल 403 सीट है। अब आप थोड़ा बहुत भी गणित जानते होंगे तो आप समझ गए होंगे की क्यों पिछड़ा वर्ग इस वक्त हर पार्टियों के आँख का तारा बना हुआ है।
पिछले कुछ महीनों में बीफ़ ने खूब सुर्खियां बटोरी। गुजरात में संघ परिवार ने गौ रक्षा खूब किया। दलितों को मारा गया। भारत सरकार चुप रही। कोई पुख्ता कार्यवाही नहीं हुई। हर बात पर टवीट करने वाले प्रधानमंत्री जी ने भी कुछ नहीं कहा। लेकिन अब जब चुनावी माहौल बनने लगा है तब घटना के करीब एक महीने बाद मोदीजी को दलितो में भाई नजर आने लगा और वो अपने 56 इंच के सीने पर गोली खाने को तैयार हो गए। आखिर अब बच भी क्या गया है, पिछले सारे जुमलो का जादू समाप्त हो गया है। बार-बार गंगा मैया बुलाने से रही। जो बेटा वादा करके गया था इन दो साल में वैसा कुछ हुआ नहीं। तो नए जुमले ही बनाने होंगे। माँ-बेटे का रिश्ता स्थापित करने में अभी तक विफल रहे है। जो लोग काशी में रहते हैं उन्हें तो काशी काफी बदला हुआ तो नज़र आता ही होगा?
ऊ.प्र के भाइयों से अपील करना चाहूँगा की किसी वेवफ़ा को इस बार अपना दिल ना दें। इस बार के चुनावी प्रचारों को खूब ध्यान से देखिये, रैली में भी जाइये। हर पार्टी के चुनावी प्रचार को देखिए और यह नोटिस कीजिये की किसकी रैली बड़ी है, किस रैली में ताम-झाम ज्यादा लगा है, किस में पैसा ज्यादा लगा है। जो पार्टी या जो उमीदवार ज्यादा पैसा खर्च कर रहा हो चुनावी प्रचार में उसे तो वोट कतई नहीं दीजिये। क्योंकि ये पार्टियां जीत गयी तो सबसे पहले चुनाव में खर्च हुए पैसे निकालना चाहेगी और वो पैसा आपका होगा। वो पैसा कोई योजना लाकर खाया जायेगा। आपके हित में जो पैसे खर्च वाले होंगे वो नेताओं के जेब में जायेगा, पार्टी फंड में जायेगा और आप फिर पाँच साल तक देखते रहिएगा।
© राहुल सिंह
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