Poem( कर्म-पथ )
तू चलता चला-चल, तू चलता चला-चल
पीछे मुड़कर मत देख कि कौन आ रहा हैतू अपने ही पदचिन्हों को बढ़ाता चला-चल
( © राहुल सिंह)
नदी ने कहा था कब धरती से
मुझे रास्ता दिखाती चली-चल
वह खुद ही मुड़ी, जहाँ था उसे मुड़ना
वह खुद ही ठहरी थी, जहाँ था ठहरना
तू भी अपना रास्ता बनाता चला-चल
तू चलता चला-चल, तू चलता चला-चल
( © राहुल सिंह)
बसंती हवा जब मस्ती में बही थी
वृक्षों में थी उलझी, पर्वतों ने था रोका
हर किसी को झुमाती, झुकाती चली ओ
हर बाधाओं को पार करता चला-चल
तू भी मस्ती में गुनगुनाता चला-चल
तू चलता चला-चल, तू चलता चला-चल॥
(© राहुल सिंह)
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