IRONY


तुम क्यों नहीं सुनती !

तुम हो                                                               
कहीं न कहीं तुम जरूर हो
मुझे यकीन है,
भले ही दुनिया को न हो ।

लोग मुझे पागल समझते हैं
जब मैं बात करता हूँ, इन दीवारों से
इन पंछियों से, इन घटाओं से
नदियों से , हवाओं से
खेतों से , खलिहानों से

ह ह-ह-ह-ह

ये मूर्ख क्या समझे भावनाओं को
क्या पहचाने संदेशवाहकों को

जब मंदिर में पड़ी पत्थर की मूर्ति
और कहीं दूर बसी प्रियेसी
सुन सकती है अपने प्रिय की आवाज़
तो नानी तुम क्यों नहीं !
तुमने तो केवल अपना वृद्ध देह त्यागा है ॥

                                             ~Poem by Rahul Singh

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