LYRICS
भाग्य पर तू क्यों रोए रे साथी
भाग्य तो बस एक शब्द रे
हाथ की लकीरों में क्यों उलझे है
यह तो बस मुठी की एक नींव रे
उठ और मेहनत कर ले
तभी मिलेगी तुझे जीत रे
तभी मिलेगी तुझे जीत रे
मिलेगी मंजिल कबतलक
ये क्यों बार-बार तू सोंचे रे
तेरा काम राह पर चलना
तो चला चल राही रे
कभी तो मिलेगी तुझे तेरी मंजिल रे
किस्मत के धागे में तू क्यों उलझे है
पहन ले कर्म का जामा रे
बह रही हो लहरे चाहे तेरे विपरीत
छोड़ ना सब्र की नैया रे
कभी तो बहेंगे मौजे तेरे संग रे ॥
भाग्य तो बस एक शब्द रे
हाथ की लकीरों में क्यों उलझे है
यह तो बस मुठी की एक नींव रे
उठ और मेहनत कर ले
तभी मिलेगी तुझे जीत रे
तभी मिलेगी तुझे जीत रे
मिलेगी मंजिल कबतलक
ये क्यों बार-बार तू सोंचे रे
तेरा काम राह पर चलना
तो चला चल राही रे
कभी तो मिलेगी तुझे तेरी मंजिल रे
किस्मत के धागे में तू क्यों उलझे है
पहन ले कर्म का जामा रे
बह रही हो लहरे चाहे तेरे विपरीत
छोड़ ना सब्र की नैया रे
कभी तो बहेंगे मौजे तेरे संग रे ॥
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