TRUE JOURNEY

                        एक यात्रा                     

लहरों की ललकार सुनकर मैं कूद पड़ा मंझधार में ,
लेकिन पटवार भूल आया मैं लोकसभा की दरबार में। 
लहरों से जितना है मुझे , बस यही था दिलो-दिमाग में ,
लेकिन मेरे पैर खड़े थे कागज़ के एक  नाव में। 

बार -बार हुंकार भरता , सागर उस काल में 
मेरे हौंसले की परीक्षा लेता अपने मदमस्त उछाल में 
दूर -दूर तक किनारा न था ,केवल सन्नाटा था उस काल में 
अपने ही आवाज़ को सुनता मैं ,छोटी सी अंतराल में ।
मेरे हौंसले पस्त न हुए , बढ़ता गया लहरों की उछाल में,
लेकिन मेरे पैर खड़े थें कागज़ के एक नाव में । 

 उसने अब आँधियाँ उठाए ,जैसे आंदोलन भारत देश में ,
प्रलयरूपी तांडव किया वो ,अपने संपूर्ण आवेश में । 
इतने से भी जब डिगा नहीं मैं ,मात खाया वह 
अपने हर चाल में ,
कुछ देर तक शांत रहा वो अपने ही 
अनंत विस्तार में । 

मेरी आँखे चमक उठीं , देखकर सुन्दर कलियाँ 
उसके कंटीले धार में ,
और मैं उलझता चला गया उसके 
इस मनमोहक जाल में । 

जबतक लेती कलियाँ मुझे अपने हसीं आगोश में ,
तब तक मुझे आभास हुआ की मेरे 
पैर खड़े हैं कागज़ के एक नाव में । 
                और 
उस माया जाल को तोड़ लौट आया मैं 
अपने कठिन राह में 
तभी हाथ जोड़े प्रकट हुआ सागर 
मेरे समक्ष में । 
बोला , इससे कठिन अड़चने नहीं हैं 
मेरे इस अनंत विस्तार में 
सफल हुए आप इस संसार के 
सबसे कठिन इम्तिहान में । 

लेकिन मेरे पैर खड़े थे। ……।। 

                                              -राहुल सिंह 


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