DORAHE
दोराहे
आज इस जीवन यात्रा में
खड़ा हूँ मैं दोराहे पर ,
एक तरफ है ,फूलों की बगिया
तो दूसरी तरफ शूलों की शैय्या ।
महक उठती है फूलों की काया
केवल सुहाने ऋतुराज में
शुष्क रहती है इसकी रास नदियां
बाकि के हर मास में ।
रीझ जाता है ये मन
आकर्सित हो कर उन फूलों पर ,
फिर पछताता है अंत काल में ,
अपने कार्यों पर ।
इतिहास गवाह है ,दिव्य-छवि मिली उन्ही को
चलें है जो इन शूलों पर
पार किया भौसागर को
चढ़कर शूलों की नैया पर ।
जग उन्ही की जय करता है
देखते नही जो क्षणभंगूरों पर ,
हे! अमर काव्य तू उनको पथ दिखा
जो खड़े हैं इस दोराहे पर ॥
-राहुल सिंह
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